भरा नहीं जो भावों से है,
बहती जिसमें रस धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
– राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त